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हार्वर्ड केनेडी स्कूल के एक कार्यक्रम से निधि राजदान को साइबर क्रिमिनल ने ऐसे किया था टारगेट, जानिए खुद निधि की जुबानी पूरा मामला

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NDTV की पूर्व एंकर निधि राजदान (Nidhi Razdan) आखिर किस तरह से साइबर फिशिंग की शिकार हुईँ? किस तरह उनसे पहली बार संपर्क किया गया और कैसे वह साइबर क्रिमिनल के जाल में फंस गईं? इस तरह की गलती के लिए निधि राजदान को ट्विटर पर ट्रोल भी होना पड़ा। लोगों ने सवाल उठाए कि इतना सबकुछ हुआ और उन्हें पता क्यों नहीं लगा। इसके अलावा ट्वीटर पर ये सवाल भी उठाया गया कि वो कई महीने से खुद को हार्वर्ड यूनिवर्सिटी का असोसिएट प्रोफेसर बताते हुए ही कई प्रोग्राम में जातीं थीं। यहां तक कि अमेरिका में हुए प्रेसिडेंट चुनाव की कवरेज भी की। इस दौरान उन्होंने एक बार भी यूनिवर्सिटी जाकर इस ऑफर के बारे में चर्चा क्यो नहीं की? ऐसे तमाम सवाल पूछे गए। इस पर NDTV वेबसाइट पर निधि राजदान ने साइबर क्राइम की इस घटना की आपबीती लिखी है। उसी लेख को हिंदी में पढ़ें….

निधि राजदान ने साइबर क्राइम को लेकर क्या लिखा है? पूरा पढ़ें

ब्लॉग की शुरुआत जून 2020 से की है। जब उन्होंने ट्विटर पर घोषणा की थी कि मैं पत्रकारिता सिखाने के लिए एक एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में शामिल होने के लिए लगभग 21 वर्षों के बाद NDTV से आगे बढ़ रहीं हूं। उस समय मुझे सच में विश्वास था कि यह एक बहुत ही अच्छा अवसर था। लेकिन लगभग 8 महीने बाद अहसास हो गया कि ये सबकुछ फर्जी था। हार्वर्ड के लिए ऑफर लेटर तो सिर्फ बहाना था। ये सिर्फ मेरे बैंक खाते, व्यक्तिगत डेटा, मेरे ईमेल, मेरे मेडिकल रिकॉर्ड, पासपोर्ट और मेरे कंप्यूटर और फोन तक एक्सेस यानी पहुंच पाने के लिए सबकुछ साइबर फिशिंग का हिस्सा था। इसलिए आज ये सबकुछ लिख रहीं हूं जो मेरे लिए तो बड़ा सबक है ही साथ ही दूसरों के लिए भी ये एक जरूरी सबक है। जिससे लोग अवेयर हो सकें।

साइबर क्रिमिनल के टारगेट पर आखिर मैं ही क्यों आई?

इसकी शुरुआत 2019 के नवंबर से होती है। मुझे हार्वर्ड केनेडी स्कूल द्वारा 2020 की शुरुआत में आयोजित एक कार्यक्रम में बोलने के लिए आमंत्रित किया गया था। इस आयोजन के दौरान आयोजकर्ताओं में से एक ने मुझसे अलग से संपर्क किया था। उसने बताया था कि टीचिंग के लिए पद खाली है। अगर आप इसमें दिलचस्पी लेंगी तो मुझे खुशी होगी। ये सुनकर मैंने अपना बॉयोडेटा (CV) जमा किया। उस समय यही सोचा था कि कोशिश करने में कोई बुराई नहीं है क्योंकि मेरे पास खोने के लिए भी कुछ नहीं था। सच कहूं तो वास्तव में यहां से किसी तरह के ऑफर मिलने की मुझे कोई उम्मीद नहीं थी। कुछ हफ्तों बाद 90 मिनट के लिए मेरा ऑनलाइन इंटरव्यू हुआ था।

जिस तरीके से ये सबकुछ हुआ मुझे सबकुछ सही और भरोसेमंद लग रहा था। जो मुझसे सवाल पूछे गए वो पूरी तरह से प्रोफेशनल थे। मैंने उस समय गूगल पर सर्च भी किया था। जिसमें पता चला था कि हार्वर्ड एक्सटेंशन स्कूल द्वारा पत्रकारिता की डिग्री प्रोग्राम है। हालांकि, जैसा कि कई लोग ट्वीट कर रहे हैं कि हार्वर्ड में कोई जर्नलिज्म कोर्स है ही नहीं। लेकिन इसके ठीक विपरीत हार्वर्ड में एक स्कूल है जिसे एक्सटेंशन स्कूल कहा जाता है। इसमें जो पत्रकारिता का कोर्स डिग्री प्रोग्राम के रूप में है। वास्तविक प्रोग्राम को मास्टर ऑफ लिबरल आर्ट्स के रूप में है जिसे पत्रकारिता की डिग्री कहा जाता है। एक्सटेंशन स्कूल 500 फैकल्टी हैं, जिनमें से नंबर-17 को पत्रकारिता संकाय के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इनमें से बहुत से लोग कामकाजी पत्रकार भी हैं। मुझे विश्वास था कि मैं इस प्रोफाइल में फिट रहूंगी। इसलिए सबकुछ ठीक लगा।

जनवरी 2020 में हार्वर्ड के HR से आए कथित ईमेल से हुआ भरोसा

जनवरी 2020 में मुझे एक ईमेल आया था। ये ईमेल कथित तौर पर हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के एचआर विभाग से था। ईमेल करने वाले ने खुद को एक आधिकारिक हार्वर्ड ईमेल आईडी के रूप में  बताया था। इस ईमेल में एक ऑफर लेटर और कॉन्ट्रैक्ट लेटर था। इन लेटर पर हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के चिन्ह के साथ एक लेटरहेड भी था। इस लेटर पर हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के सभी वरिष्ठ अधिकारियों के सिग्नेचर भी थे। इनमें वही नाम थे जो वास्तव में यूनिवर्सिटी में कार्यरत हैं। इसके अलावा इन्होंने मुझे NDTV में हायर करने वाले अधिकारियों को भी ईमेल भेजा था। जिसमें किसी को भी कुछ गड़बड़ जैसा नहीं लगा था।

इसके बाद मेरे और कथित हार्वर्ड ईमेल आईडी के बीच कई बार ईमेल से बात हुई। इसके बाद उन्होंने वर्क वीजा के लिए मुझसे मेरी पर्सनल डिटेल भी मांगी थी। मुझे मार्च 2020 में एक फैकल्टी में शामिल होने के लिए ऑफिशियल निमंत्रण भी भेजा गया था लेकिन कोरोना महामारी के कारण इसे बंद कर दिया गया था। मैंने ईमानदारी से इसके बारे में कुछ नहीं सोचा था क्योंकि कोविड ने अचानक हमारे सभी जीवन को बाधित करना शुरू कर दिया था और लॉकडाउन को दुनिया भर में घोषित किया जा रहा था।

जून 2020 में NDTV को छोड़ना बड़ा निर्णय था : Nidhi Razdan

अब बात जून 2020 की। उस समय मैंने NDTV को छोड़ दिया और हार्वर्ड जाने का निर्णय लिया। इस प्रकार अब तक के सभी कम्यूनिकेशन के आधार पर जो कुछ भी हुआ था उस पर मुझे कोई संदेह नहीं था। मेरे पास तो क्लास शेड्यूल भी भेजे गए थे। ये भी बताया गया कि सितंबर 2020 से ही ऑनलाइन क्लासेज शुरू हो जाएंगी। लेकिन अचानक फिर से अक्टूबर तक के लिए क्लासेज बंद करने की घोषणा हुई। इसके बाद जनवरी 2021 में फिर से क्लास शुरू होने का मैसेज मिला था। मुझे बताया गया था कि मेरे लिए यूएस में वर्क वीजा जारी किया गया था जो यात्रा के लिए आवश्यक होने पर ही मुझे भेजा जाएगा। इस तरह बार-बार कोई ना कोई बहाना बनाया गया। इस तरह की प्रक्रिया से मैंने निराश होना शुरू कर दिया था और ईमेल पर बार-बार अपनी निराशा को जताया भी। इस दौरान कोई सैलरी भी नहीं मिली। मेरे पूछे जाने पर मुझे यह भी बताया गया कि सितंबर 2020 से सैलरी दे दी जाएगी। लेकिन कोई सैलरी नहीं आई। इस बारे में पूछे जाने पर हमेशा कोरोना और कुछ टेक्निकल दिक्कत को वजह बताया गया। एक समय पर उन्होंने मुझे बैंक ट्रांसफर स्लिप भी भेजी लेकिन कोई पैसा नहीं आया।

…और तब पहली बार लगा कि कुछ गड़बड़ हो रहा है

जब पैसे नहीं मिले तब कुछ गड़बड़ी का अहसास हुआ। मैंने अभी भी कल्पना नहीं की थी कि यह एक बड़ा धोखा था। लेकिन इतना समझ गई कि यूनिवर्सिटी और अन्य डिपार्टमेंट के बीच कम्यूनिकेशन की कोई कमी जरूर है। दिसंबर 2020 में मैंने मैंने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के HR हेड को लिखा था लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। फिर जनवरी 2021 में मैंने ग्रेजुएट स्कूल ऑफ आर्ट्स एंड साइंसेज के डीन के कार्यालय को लिखा था। अभी इस हफ्ते (यानी 7 से 15 जनवरी के बीच) की शुरुआत में ही मैंने उनसे यह कहते हुए पीछे से सुना कि मेरी नियुक्ति का कोई रिकॉर्ड नहीं है। और जिन लोगों ने मुझसे खुद को एचआर स्टाफ होने का दावा किया था उस नाम के लोग यहां मौजूद नहीं हैं। इस पर मैं भी सन्न रह गई।

इसके बाद मैंने हार्वर्ड को लिखा कि वे इस मामले को गंभीरता से लें क्योंकि वहां लोग अपने वरिष्ठ कर्मचारियों और यहां तक कि एचआर के उपाध्यक्ष और उनके मुख्य वित्तीय अधिकारी सहित कई लोग नकली लेटरहेड पर अपने हस्ताक्षर किए हैँ। इसके बाद मैंने तुरंत उन सभी संस्थाओं और संगठनों को भी लिखा जिनके साथ मैं जुड़ी हुई थी। उन्हें भी इस बारे में जानकारी दी। मेरे वकील ने सभी ईमेल पढ़े और महसूस किया कि ये एक बड़े पैमाने पर साइबर फ़िशिंग की एक्सरसाइज थी। मेरे पैसे चोरी करने की नीयत से मेरा पर्सनल डेटा लिया गया है।

इसलिए मैंने पुलिस शिकायत दर्ज कराई और सभी डिटेल भी दी। इस घटना से बहुत बड़ा सबक मिला है। इसलिए कभी भी ऑनलाइन किसी चीज़ पर भरोसा न करें। मैं बहुत निराश और परेशान हूं लेकिन इससे भी राहत मिली है कि मुझे पता चल गया है कि हार्वर्ड सहित अन्य अधिकारियों को कोई बड़ा नुकसान होने से पहले ही इस बारे में पता चल गय। अगर इस सब के बाद भी मुझ पर आरोप लगाया जा सकता है कि मैं बेवकूफ हूं, तो इससे भी मैं सीख लूंगी और आगे बढ़ूंगी।

(निधि राजदान NDTV की पूर्व कार्यकारी संपादक हैं। ये ब्लॉग उन्होंने NDTV की वेबसाइट पर लिखा है।)