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क्राइम

Cyber Crime की रिपोर्टिंग के लिए गृह मंत्रालय ने जारी किया नया हेल्पलाइन नंबर, अब 155260 की जगह 1930 नंबर पर करें कॉल

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Cyber Crime की रिपोर्टिंग के लिए गृह मंत्रालय ने जारी किया नया हेल्पलाइन नंबर, अब 155260 की जगह 1930 नंबर पर करें कॉल

साइबर अपराध (Cyber Crime) के बढ़ते मामलों के मद्देनजर गृह मंत्रालय (MHA) ने एक नया साइबर क्राइम हेल्पलाइन नंबर 1930 शुरू किया है। नया साइबर हेल्पलाइन नंबर 1930 के साथ-साथ पुराना 155260 नंबर भी काम करेगा।

ऐसे में अगर आप साइबर अपराध के शिकार हुए हैं, तो अब आप इसकी रिपोर्ट करने के लिए 1930 पर कॉल कर सकते हैं। यह नया हेल्पलाइन नंबर, 155360 की तरह हैकर्स द्वारा निशाना बनाए जा रहे किसी भी व्यक्ति की मदद के लिए एक आपातकालीन नंबर के रूप में कार्य करेगा।

वर्तमान में राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में किसी भी साइबर अपराध की सूचना देने के लिए हेल्पलाइन नंबर 155260 काम कर रहा है। दूरसंचार विभाग (DoT) की मदद से गृह मंत्रालय ने एक नया हेल्पलाइन नंबर 1930 जारी कया है, जो पहले से आवंटित नंबर 155260 की जगह लेगा।

सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से अनुरोध किया गया है कि नए हेल्पलाइन नंबर 1930 को प्राथमिकता के आधार पर चालू किया जाए। इसके अलावा, नागरिकों की सुविधा के लिए 155260 और 1930 दोनों नंबर कुछ महीनों के लिए सक्रिय रहेंगे।

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अधिकारियों के अनुसार भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C) और केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्य पुलिस बलों को एक वित्तीय धोखाधड़ी की रिपोर्टिंग और प्रबंधन के लिए प्रणाली स्थापित करने और उपलब्ध कराने के लिए एक पहल शुरू की। देश में साइबर अपराध के मामलों में भारी वृद्धि देखी गई है। कोरोना महामारी के दौरान काफी संख्या में सिम कार्ड क्लोनिंग और फेक ट्रांजेक्शन के मामले सामने आए।

हेल्पलाइन कैसे काम करती है:

  • पीड़ित व्यक्ति पुलिस अधिकारी द्वारा संचालित हेल्पलाइन डायल करता है।
  • व्यक्ति को औपचारिक रूप से राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल पर शिकायत दर्ज करने के लिए कहा जाता है।
  • तब एक टिकट संबंधित वित्तीय मध्यस्थों (FI) को भेज दिया जाता है।
  • फ्रॉड ट्रांजेक्शन टिकट डेबिट किए गए Fl (यानी बैंक जहां पीड़ित का खाता है) और क्रेडिट किए गए FI (धोखाधड़ी लाभार्थी खाते का बैंक/वॉलेट) दोनों के डैशबोर्ड पर दिखाई देगा।
  • जिस बैंक/वॉलेट में टिकट भेजा गया है, वह फ्रॉड ट्रांजेक्शन के विवरण की जांच करता है। यदि फंड बाहर निकल जाता है, तो यह पोर्टल में ट्रांजेक्शन के विवरण को फीड करता है और इसे अगले फ्लो तक बढ़ाता है। यदि फंड उपलब्ध पाया जाता है, तो इसे अस्थायी रूप से रोक दिया जाता है।

एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि जब कोई पीड़ित पहली बार ठगी का शिकार होता है, तो वे अपने बैंक खाते या ई-वॉलेट के विवरण के साथ हेल्पलाइन पर कॉल करते हैं, जहां से पैसा कटा था। यदि संभव हो तो उस बैंक खाते में पैसा जमा कर दिया जाता है।

पैसा बाद में पीड़ित को वापस मिल जाता है
इस जानकारी के साथ पुलिस तुरंत बैंक या ई-वॉलेट सेवा प्रदाता को धोखाधड़ी की सूचना देती है। यह जानकारी कर्मचारियों तक उनके फोन और ईमेल पर पहुंचती है। अगर एटीएम से पैसा नहीं निकाला गया होता या भुगतान करने के लिए इस्तेमाल किया गया है, तो पुलिस के अनुरोध पर बैंक या ई-वॉलेट सेवा प्रदाता द्वारा पैसे रोक दिए जाते हैं। पैसा बाद में पीड़ित को वापस मिल जाता है।

जितनी जल्दी सूचना दी जाए, उतना ही बढ़िया
आगे की ट्रांजेक्शन को रोकने के लिए पीड़ित को व्यक्तिगत रूप से अपने बैंक या ई-वॉलेट सेवा प्रदाताओं को कॉल करने की आवश्यकता होती है, लेकिन हेल्पलाइन नंबर पर कॉल करने से धन प्राप्त करने की संभावना बढ़ जाती है। पूरी प्रणाली इस बात पर निर्भर करती है कि फेक ट्रांजेक्शन कितनी जल्दी रिपोर्ट किया जाता है। जितनी जल्दी इसकी सूचना दी जाए, उतना अच्छा होता है।

हेल्पलाइन पर कॉल करने से तुरंत कार्रवाई शुरू करने में मदद मिलती है
यह अपराध की रिपोर्ट करने के लिए पुलिस स्टेशन जाने के पारंपरिक तरीके से बहुत अलग है। ऐसा इसलिए क्योंकि शिकायत को पुलिस स्टेशन या साइबर अपराध सेल में दर्ज होने में और पुलिस अधिकारियों को अपनी जांच शुरू करने में कुछ घंटे लगते हैं। दूसरी ओर हेल्पलाइन पर कॉल करने से तुरंत कार्रवाई शुरू करने में मदद मिलती है।

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